|| Books से जुड़े हम ||
किताबों से जुड़े हम...
'किताब' बचपन में हम सभी जब पढ़ने जाते थे तो सबसे पहले किताबों का महत्व हमें बताया जाता था तभी हमारी शिक्षा की शुरुआत होती थी। जिससे विद्यार्थी को पता चलता था ज्ञान क्या होता है और ज्ञान कहा से आता है, ज्ञान से क्या मिलता है आखिर में ज्ञान क्या है और कहां से पाया जाता है जिसके बाद शिक्षक भी रुचि से बताते थे कि ज्ञान किताबों से मिलता है। "जितना ज्ञान किताबों से मिल सकता है, उतना ज्ञान कहीं और से नहीं मिल सकता" किताबों को पढ़ने से बुद्धि का विकास होता है और हम अच्छे एवं साक्षर व्यक्ति बन पाते हैं।
हमारे धर्म एवं संस्कृति में महाभारत, रामायण, पुराण, कुरान, गुरु ग्रंथ साहिब, वेद शास्त्र, श्रीमद्भागवत, बाइबिल जैसे कई धार्मिक ग्रंथ हैं जिन्हें भले ही हम साधारण पुस्तक समझकर पढ़ते हैं वह हमारे लिए लिखी गई हैं, चाहें पुस्तक कहो या किताब जिसे पढ़कर ज्ञान मिलता है वही हमारे लिए उपयोगी है। इन धार्मिक पुस्तकों में दुनिया के सभी सवालों के जवाब लिखे हैं ऐसा माना जाता है, अगर कोई इन पुस्तकों के ज्ञान को जाने अथवा पढ़े तो वह अपने हर सवाल का जवाब पा सकता है। इसी तरह केवल पुस्तक को पढ़कर इतना ज्ञान पाया जा सकता है तो हमें भी किताबें पढ़ने से चूँकना नहीं चाहिए। कहा जाता है कि किताबों का महत्व वही व्यक्ति जान सकता है जो किताबों को पढ़ने में रुचि रखता है कहीं- न -कहीं यह बात सच है लेकिन आज के समय में किताबों से ज्यादा अन्य माध्यमों से ज्ञान अर्थात् पढ़ाई-लिखाई की जाती है यह गलत नहीं है लेकिन 'किताबों से जुड़े हम' आज अपनी संस्कृति को भूले जा रहे हैं।
पहले जहां बच्चे को सबसे पहले पढ़ने और पढ़ाने के लिए किताबें दी जाती थी अब वही खेल के माध्यम से शिक्षा का आरंभ किया जाता है। आज बच्चे को पहली कक्षा में मिलने वाला ज्ञान ऐसे माध्यमों से मिल जाता है, जहां बच्चे को पता ही नहीं होता स्वर क्या है और व्यंजन क्या है? अब देखने में आता है वर्णमाला के अंग्रेजी रूप 'अल्फाबेट' से बच्चे की शिक्षा का आरंभ होता है। विकास करना अच्छी बात है इससे हम आगे बढ़ते हैं लेकिन आगे बढ़ते-बढ़ते अपनी भी पुरानी चीजों को, माध्यमों को भूल जाना कहां की समझदारी है हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे हैं अपनी पुरानी चीजों को भूलते जा रहे हैं।
" जमीन से जुड़े हम अपनी जमी को क्यों भूल जाते हैं,
मिट्टी से बने हम अपनी मिट्टी को छूने से क्यों कतरातें हैं। "
यह वाक्य कहीं न कहीं उस सच्चाई को दर्शाते हैं जिन्हें आज हम अनदेखा करके चलते हैं। हम भूल ही जाते हैं हम कहां से आए हैं, हम किससे जुड़े हुए हैं स्वयं को छोड़ो हम यह बात शिक्षा में कदम रखने वाले नए विद्यार्थियों को बताना भी भूल जाते हैं।
जो शिक्षा सर्वप्रथम एक माता-पिता को अपने बच्चे को देनी चाहिए वह भी अब ऐसे माध्यमों से दी जाती है जिन्हें हम कभी बच्चों से दूर रखा करते थे। किताबों से जुड़े हम अब मोबाइल, लैपटॉप जैसे माध्यमों से पढ़ाई करते हैं 'जो किताबों से ज्ञान मिलता है उतना ज्ञान किसी और चीज से नहीं मिलता' आज यह वाक्य भी झूठा साबित हो गया, भले ही हम कितना सोचे या समझे लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि जिन चीजों से कभी हम अपने बच्चों को दूर रखा करते थे अब स्वयं ही उन चीजों को बच्चों के हाथ में देते हैं।
आज जो ज्ञान मां-बाप को शुरुआत में खुद बच्चे को देना चाहिए अब वह शिक्षा भी बच्चा कहीं से भी किसी चीज से भी ले सकता है चाहे वो सही हो या गलत। ये केवल किताबी शिक्षा नहीं बल्कि एक प्रेरणा होती है जो मां-बाप अपने बच्चे को कभी देते थे।
पहले की बात की जाए तो छोटे बच्चों के लिए किताबों को आकर्षक बनाया जाता था जिससे बच्चे की किताबों में रुचि बढ़ती थी बदलते समय के साथ-साथ तकनीक ने किताबों के स्वरूप को भी बदलकर रख दिया है अब किताबें भी इलैक्ट्रानिक माध्यमों में आने लगी हैं जिसके कारण बच्चों की रुचि मोबाइल और लैपटॉप में ज्यादा बढ़ती है बाद में बच्चे पर ही दोष डाला जाता है जबकि यह गलती शुरुआती स्तर पर बड़ों के द्वारा ही की जाती है।
किताबों का स्वरूप बदलने से ज्ञान नहीं बदलता, ज्ञान तो कहीं से भी पाया जा सकता है लेकिन किसी किताब को उठाकर पढ़ना और मोबाइल में पढ़ने से काफी अंतर आ जाता है पुराने समय में लोग कई प्रकार की किताबें अपने घरों में रखते थे जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी पढ़ा जाता था अब तो किताबों का माध्यम गायब होना और किताबी ज्ञान गायब होना दोनों एक हो गया है। डिजिटल माध्यमों से पढ़ना गलत नहीं है फिर भी हर चीज का अपना फायदा होता है जिसे समझना जरूरी है आज के समय में कई लोग पुरानी किताबों को देखकर यही समझते हैं इसमें जो लिखा है वह बहुत पुराना है या फिर इसमें लिखी बातें अब उपयोगी नहीं है- साफ शब्दों में बोला जाए तो 'ज्ञान कभी पुराना नहीं होता' बल्कि 'ज्ञान जैसे लिया जाता है वैसे हमें बना देता है'।
पुस्तक का भंडार, ज्ञान का भंडार होता है जिसे जितना भरा जाए उतना कम है इसलिए हमारा आज के समय में भी प्रयास होना चाहिए की पहले की तरह हम किताबों से जुड़े रहे जो हमें अपनापन महसूस कराती हैं। ऐसा भी समय था जब किसी व्यक्ति को अपना अकेलापन दूर करने के लिए किताबों का सहारा लेना पड़ता था, कई बार लोग किताब लिखकर, किताबें पढ़कर अपना अकेलापन दूर करते थे इससे न सिर्फ ज्ञान बढ़ता था बल्कि किताबों का महत्व पता चलता था। किताबें ही व्यक्ति की सबसे अच्छी मित्र होती हैं यह बात बिल्कुल सच है भले ही कोई व्यक्ति किसी को छोड़ सकता है किंतु किताबे हमेशा हमारे साथ रहती हैं। किताबों से जुड़े हम प्राचीनकाल से ही किताबों को अपनी जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा समझते आए हैं हम भी किताबों से जुड़े रहेंगे तो खुद को कभी भी अकेला नहीं समझेंगे।
' किताबों से जुड़े हम,
मिलते हैं जहां सारे रंग '
रिया तोमर
जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन
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